इस पेज पर आप Shree Krishna Facts in Hind की जानकारी विस्तार से पढ़ेंगे।
पिछली पोस्ट में हमने Ramayan Facts in Hindi और Mahabharat Facts in Hindi की जानकारी शेयर की थी तो उस पोस्ट को भी पढ़े।
इस बार कृष्ण जन्माष्टमी 26 अगस्त दिन सोमवार को पड़ रही है इस पावन अवसर पर हम आपको बताएंगे श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े ऐसे तथ्य जिनसे आप शायद अनजान हों।
Shree Krishna Facts in Hindi
1. भगवान श्रीकृष्ण को श्री हरि का आठवां अवतार कहा जाता है।
2. माना जाता है कि भगवान कृष्ण नारायण का पूर्ण अवतार थे धरती पर जन्म लेने के बाद कृष्ण अवतार में उन्होंने बहुत सी लीलाएं की।
3. कान्हा से लेकर द्वारकाधीश श्रीकृष्ण बनने तक उन्होंने बहुत कठिन सफर तय किया।
4. श्रीकृष्ण के हर काम के पीछे जनकल्याण की मंशा और संसार के लिए एक संदेश छिपा रहता था यही वजह है कि श्रीकृष्ण के जीवन के तमाम रोचक तथ्य सुनने और पढ़ने को मिल जाते हैं।
5. हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कन्हैया के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
6. कहा जाता है कि हरसिद्धि माता श्रीकृष्णजी की कुलदेवी थीं। पौराणिक ग्रन्थों के आधार पर यह भी कहा जाता है कि भूमासुर राक्षस ने सोलह हजार कन्याओं को बलि देने का निश्चय किया तो श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कराया।
उन कन्याओं को उनके घर वालों ने स्वीकार नहीं किया तो श्रीकृष्णजी ने सोलह हजार रूप धारण कर उन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
7. भगवान श्री कृष्ण के गुरु का नाम ऋषि संदीपनी था।
8. आपको जानकर हैरानी होगी कि कंस अपने पूर्व जन्म में कालनेमी नाम के एक राक्षस थे।
9. क्या आपको पता है देवकी के जो पुत्र थे वे पूर्व जन्म में कंस यानी कालनेमि के पुत्र थे।
10. आखिर कंस ने क्यों मारा अपने ही पुत्रो को? – कंस के पूर्व जन्म यानी कालनेमि के समय में हिरण्यकश्यप ने उनके पुत्रों को श्राप दिया था कि वे अपने पिता द्वारा ही मारे जाएंगे यही कारण है कि कालनेमि (कंस) ने अपने अगले जन्म में उस श्राप के अनुसार अपने ही पुत्रों का वध किया।
11. कालनेमि के पुत्रों का नाम हंस, सुविक्रम, क्रत, दमन, रिपुमद्रन और क्रोधनाथ था।
12. वेसे तो श्री कृष्ण की 16,108 पत्नी थी जिनमें से केवल आठ ही राजसी पत्नी थी जिनके नाम रुक्मिणी, सत्यभामा जाम्बवती, नागनजति, कालिंदी, मित्रविंदा, भद्रा और लक्ष्मणा थे।
13. आमतोर पर मुख्य रूप से श्री कृष्ण के पुत्र रुक्मिणी से प्रद्युम्न और जाम्बवती से सांब थे जो ऋषियों द्वारा शापित भी थे।
14. एकलव्य को श्री कृष्ण के चचेरे भाई के रूप में जाना जाता है ऐसा इसलिए कि वे देवाश्रवा (वासुदेव के भाई) के पुत्र थे जो जंगल में खोने के कारण अलग हुए।
15. एकलव्य की मृत्यु श्री कृष्ण द्वारा ही हुई थी एवं उन्होने एकलव्य को आशीर्वाद दिया गया था कि जल्दी ही उनका पुनर्जन्म होगा और वे ही ध्रष्ट धुम्न कहलाये।
16. क्या आपको पता है श्री कृष्ण पांडवों के ही भाई थे , ऐसा इसलिये था माता कुंती श्री कृष्ण के पिता वासुदेव की बहन थी।
17. क्या आपको पता है कि श्री कृष्ण के शरीर से मादक गंध निकलती थी और यही गंध द्रौपदी के शरीर से भी निकलती थी।
18. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की कुल 16108 रानियां थीं वास्तव में उनकी 8 पटरानियां थीं उनका नाम रुक्मिणी, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा था।
19. श्रीकृष्णजी ने रुक्मिणी का हरण कर विवाह किया था। उत्तर प्रदेश के बुलन्द शहर में अवन्तिका देवी का मंदिर है जो आज भी स्थित है। यहीं श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी से विवाह किया था।
20. चारुमति नामक इनकी एक कन्या भी थी। अवन्तिका नगरी (उज्जैन) श्रीकृष्ण का ससुराल थी।
21. सत्यभामा अवन्तिका नरेश सत्राजित की पुत्री थी। इनके दस पुत्र थे – श्रीभानु, सुभानु, भानु, स्वरभानु, प्रभानु, चन्द्रभानु, भानुमान, अतिभानु, प्रतिभानु तथा बृहद्भानु।
22. कथन है कि राजा सत्राजित ने श्रीकृष्ण जी पर स्यमतक मणि चुराने का आरोप लगाया। वह मणि जामवन्त के पास प्राप्त हुई। राजा सत्राजित अत्यधिक लज्जित हुआ और उसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।
23. बाकी सभी को उन्होंने पत्नी का दर्जा दिया था क्योंकि भौमासुर ने उनका अपहरण कर लिया था जब श्रीकृष्ण ने उन्हें भौमासुर से मुक्त कराया तो वे कहने लगीं कि अब हमें कोई स्वीकार नहीं करेगा तो हम कहां जाएं।
24. इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें पत्नी का दर्जा देकर स्वीकार कर लिया था और जीवनभर उनका जिम्मा उठाया।
25. श्रीकृष्ण ही 64 कलाओं में निपुण बताए गए हैं कहा जाता है कि उन्होंने ये 64 कलाएं गुरु सांदीपनि से 64 दिनों में सीख लीं थीं जब वे अपनी शिक्षा पूरी करके वापस लौट रहे थे, तब उन्होंने अपने गुरु सांदीपनि को गुरु दक्षिणा के रूप में उनके मृत बेटे को वापस लौटाया था।
26. भगवान कृष्ण के कुल 108 नाम हैं, जिनमें कान्हा, कन्हैया, गोविंद, गोपाल, घनश्याम, गिरधारी, मोहन, बांके बिहारी, माधव, चक्रधर, देवकीनंदन प्रमुख हैं।
27. देवकी की सातवीं संतान बलराम और आठवीं संतान श्रीकृष्ण थे कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने माता देवकी की विनती पर अपने बाकी के छह भाइयों, जिन्हें कंस ने मार दिया था, उनसे माता देवकी को मिलवाया था इसके बाद उन्होंने उन भाइयों को मुक्ति दे दी थी।
28. भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज 17 वर्ष की आयु में छोड़ा था उसके बाद वे सिर्फ एक बार राधारानी से मिले, लेकिन उनका राधारानी से संबंध उम्र आत्मा का रहा राधारानी को वे अपनी शक्ति और सोच मानते थे।
29. भगवान श्रीकृष्ण से भगवद् गीता सबसे पहले अर्जुन के अलावा हनुमान और संजय ने भी सुनी थी हनुमान कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ में सबसे ऊपर सवार थे।
30. एक बार इन्द्र ने कुपित होकर बादलों को आदेश दिया कि गोवर्धन पर्वत के आसपास जहाँ नन्द बाबा आदि मथुरावासियों की गायें चर रही थीं वहाँ घनघोर वर्षा कर दो।
अतिवृष्टि होने से गायें तथा ग्वाले इधर-उधर भागने लगे। कहीं भी छुपने का स्थान नहीं मिला। ऐसे समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठिका ऊँगली पर गोवर्धन पर्वत ऊपर उठा लिया और सभी गायें तथा ग्वाले उसके नीचे खड़े हो गए और अतिवृष्टि के दुष्परिणाम से बच गए। आज भी भारतीय घरों में दीपावली के दूसरे दिन इसकी स्मृति में गोवर्धन पूजन किया जाता है।
31. पौराणिक प्रसंगों के अनुसार श्रीकृष्ण ने लगभग छत्तीस वर्ष द्वारिका पर राज्य किया। प्रजा उनके शासनकाल में सुखी थी। वहाँ रहते हुए भी वे मथुरावासियों को भूले नहीं थे। उनके स्मृति पटल पर मथुरा की मधुर स्मृतियाँ अंकित थीं।
32. उनके प्रिय मित्र सुदामा भी उनसे भेंट करने द्वारिका आए थे। उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय थी। कृष्ण जी ने दौड़ कर उनकी बड़ी आवभगत की। उनके कंटकाकीर्ण पैरों को जल से धोकर स्वच्छ किया।
कवि नरोत्तम दास जी सुदामा चरित पुस्तक में लिखते हैं।
पानी परात को हाथ छुयो नहीं नैनन के जल से पग धोये।
देखि सुदामा की दीनदशा करुणा करिके करुणानिधि रोये।।
33. एक बार कृष्ण ने अपने सखा उद्धव को गोपियों के पास उनकी मानसिक स्थिति देखने के लिए भेजा। उद्धव कृष्ण के प्रति उनकी श्रद्धा और प्रेम देखकर भाव विभोर हो गए। गोपियां कहती हैं।
उधौ मन न भये दस बीस।
एक हुतो सो गयो स्याम संग को आराधे ईस।
34. भगवान श्री कृष्ण ने देवकी और वासुदेव को चतुर्भुज रूप में अपने दर्शन दिए थे और कहा था कि मैं आपके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा और जन्म के बाद आप मुझे नंद और यशोदा के पास छोड़ आना।
श्री कृष्ण के जन्म के उपरांत वासुदेव उन्हें नंद बाबा के पास छोड़ दिया और वहां से नंद बाबा की पुत्री योग माया को अपने साथ ले कारागृह में वापस लौट आए। और उसके बाद उन्हें और देवकी को श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ी कोई भी बात याद नहीं थी।
35. श्री कृष्ण जी ने अपना जीवन अनोखे रूप से जिया है। वैसे तो उन्हें सभी वस्तुएँ प्रिय थीं फिर भी कुछ वस्तुओं से उनका जुड़ाव विशेष था। ये वस्तुएँ उनके व्यक्तित्व के सौंदर्य का वर्द्धन करती हैं। ये वस्तुएँ हैं- मोरपंख, वेणु (बांसुरी), मिश्री, वैजयन्ती माला, पीताम्बर तथा चन्दन तिलक।
36. ऋषियों के शाप के कारण यदुवंश का विनाश हुआ। जाम्बवन्ती का पुत्र साम्ब ने गर्भवती स्त्री का रूप धारण कर लिया और उसके मित्रों ने ऋषियों से पूछा कि इस महिला को कैसी सन्तान होगी? ऋषियों ने कहा इसे मूसल उत्पन्न होगा जो यदुवंश का नाश करेगा।
बालकों ने उस मूसल का चूर्ण बनाया और समुद्र में डाल दिया। अंत में एक छोटा सा टुकड़ा रह गया, उसे भी समुद्र में डाल दिया। उस टुकड़े को समुद्र में एक मछली ने निगल लिया।
मछुआरे ने मछली का पेट काटा तो वह टुकड़ा निकला। जरा नामक एक व्याध ने उस लौह खण्ड को अपने बाण की नोंक पर लगा लिया। दूर किसी वृक्ष के नीचे श्री कृष्ण जी लेटे हुए थे।
उनका एक पैर दूसरे पैर की जंघा पर रखा था जो किसी पशु की छबि प्रस्तुत कर रहा था। व्याध ने तीर छोड़ा और वह जाकर श्रीकृष्ण को लगा और उन्होंने अपनी भौतिक लीला समाप्त कर दी और वे परमधाम पहुँच गए-
37. श्रीकृष्ण 125 साल तक जीवित रहे उनके अवतार का अंत एक बहेलिया के तीर से हुआ था माना जाता है कि वो बहेलिया पिछले जन्म में बालि था जब भगवान राम ने बालि को छिपकर मारा था तो भगवान राम ने कहा था कि अगले जन्म में मेरी मृत्यु भी तुम्हारे हाथों होगी इसके बाद जब द्वापरयुग में नारायण कृष्ण बनकर आए तो वे जब एक पेड़ पर बैठे थे तभी बहेलिए ने उनके पैर में बने एक निशान को चिड़िया समझ कर तीर चलाया वो तीर कृष्ण के पैर में लगा और उसके बाद उन्होंने शरीर त्याग दिया।
38. कहा जाता है कि हरसिद्धि माता श्रीकृष्णजी की कुलदेवी थीं। पौराणिक ग्रन्थों के आधार पर यह भी कहा जाता है कि भूमासुर राक्षस ने सोलह हजार कन्याओं को बलि देने का निश्चय किया तो श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कराया। उन कन्याओं को उनके घर वालों ने स्वीकार नहीं किया तो श्रीकृष्णजी ने सोलह हजार रूप धारण कर उन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया।
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